
बीबीएन, नेटवर्क,30 जुलाई। अमेरिका के बाद अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की निगरानी रिपोर्ट में भी जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के पीछे आतंकी संगठन ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) की संलिप्तता का खुलासा हुआ है। यूएनएससी की मॉनिटरिंग टीम द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में साफ तौर पर बताया गया है कि लश्कर-ए-तैयबा के इस मुखौटा संगठन ने हमले की जिम्मेदारी ली थी।
दिलचस्प बात यह है कि यह रिपोर्ट उस समय सामने आई है जब पाकिस्तान यूएनएससी का अस्थायी सदस्य होते हुए उसकी एक समिति की अध्यक्षता कर रहा है। रिपोर्ट में इशारों-इशारों में पाकिस्तान की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। यूएन के एक सदस्य देश द्वारा टीआरएफ और लश्कर के संबंधों को नकारने तथा लश्कर को ‘निष्क्रिय’ बताने के दावे पर भी रिपोर्ट में टिप्पणी की गई है।
भारत के लिए कूटनीतिक सफलता
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि रिपोर्ट में दर्ज ये टिप्पणियां पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को उजागर करने के लिए काफी हैं। इसे भारत की एक अहम कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। इससे पहले अमेरिका ने भी टीआरएफ को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित किया था।
यूएनएससी की 1267 प्रतिबंध समिति द्वारा तैयार की गई यह रिपोर्ट 21 जुलाई को अंतिम रूप दी गई और बुधवार को सार्वजनिक की गई।
रिपोर्ट में क्या है?
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पांच आतंकियों ने एक पर्यटक स्थल पर हमला किया, जिसमें 26 निर्दोष नागरिक मारे गए। हमले के तुरंत बाद टीआरएफ ने जिम्मेदारी ली और घटनास्थल की तस्वीर भी जारी की। 26 अप्रैल को हालांकि टीआरएफ ने इस दावे को वापस ले लिया और उसके बाद से संगठन की ओर से कोई बयान सामने नहीं आया। किसी अन्य संगठन ने भी हमले की जिम्मेदारी नहीं ली। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र में तनाव बरकरार है और आतंकी संगठन इसका फायदा उठाने की फिराक में हैं।
पाकिस्तान की रणनीति बेनकाब
भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस रिपोर्ट ने पाकिस्तान के उन मंसूबों को उजागर कर दिया है, जिनके तहत वह भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए नए नामों वाले संगठनों का इस्तेमाल कर रहा है। लश्कर और जैश जैसे आतंकी संगठनों को सामने लाने के बजाय पाकिस्तान ने ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ और ‘पीपुल अगेंस्ट फासिस्ट फ्रंट’ जैसे नामों से आतंकी ढांचे खड़े किए हैं, ताकि घाटी में हिंसा को ‘स्थानीय असंतोष’ की शक्ल दी जा सके।
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