
बीबीएन, नेटवर्क। झारखंड की राजनीति में आदिवासी अस्मिता के सबसे मजबूत प्रतीकों में से एक, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक और ‘दिशोम गुरु’ के नाम से विख्यात शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे पिछले एक महीने से अधिक समय से वेंटिलेटर पर थे।
शिबू सोरेन का इलाज जून 2025 से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में चल रहा था। उन्हें ब्रेन स्ट्रोक और किडनी से जुड़ी गंभीर समस्याएं थीं। हाल के दिनों में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके पुत्र हेमंत सोरेन के साथ अस्पताल पहुंचकर उनका हाल-चाल जानने पहुंचे थे।
कभी मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे (2005, 2008, 2009), लेकिन दुर्भाग्यवश, वे कोई भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। इसके बावजूद वे झारखंड की जनभावनाओं के प्रतिनिधि बने रहे। राज्य के गठन से लेकर आदिवासी हक-हकूक की लड़ाई तक, उनका राजनीतिक जीवन संघर्षों और आंदोलनों से भरा रहा।
झारखंड आंदोलन के अगुवा
11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार के हजारीबाग (अब रामगढ़) जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन की कमान उस समय संभाली जब राज्य की अवधारणा भी अस्पष्ट थी। उन्होंने ‘धनकटनी आंदोलन’ के ज़रिए महाजनी प्रथा और साहूकारी शोषण के खिलाफ आदिवासियों को संगठित किया।
उन्होंने आदिवासी अस्मिता और स्वाभिमान को सत्ता की राजनीति के केंद्र में लाकर खड़ा किया। यही नहीं, उनके नेतृत्व में झामुमो ने झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने की निर्णायक लड़ाई लड़ी।
लंबा संसदीय जीवन, जनता के बीच पैठ
शिबू सोरेन 1980 से लेकर 2019 तक दुमका से सात बार लोकसभा सांसद रहे। वे केंद्रीय कोयला मंत्री भी रहे। वर्तमान में वे राज्यसभा सदस्य थे। राजनीतिक गलियारों में उनके निधन को एक युग का अवसान माना जा रहा है — वह युग जिसमें राजनीति जनसंघर्षों से निकलकर संसद के गलियारों तक पहुंचती थी।