
बीबीएन, नेटवर्क, 6 अगस्त। हरियाणा के सोनीपत ज़िले के दीपालपुर गांव स्थित श्री रजनीश ध्यान मंदिर में 12 अगस्त से 27 अगस्त तक ‘गीता ध्यान यज्ञ’ का आयोजन किया जा रहा है। इस आध्यात्मिक शिविर में देशभर से लगभग 75 साधक और साधिकाएं भाग लेंगे। शिविर के दौरान प्रतिभागी ओशो के उन दुर्लभ प्रवचनों को सुनेंगे, जो उन्होंने पांच वर्षों में भगवद गीता के 18 अध्यायों की व्याख्या करते हुए दिए थे।
कार्यक्रम की प्रधान आचार्या मां अमृत प्रिया ने बताया कि ‘‘लोग सदियों से गीता का अध्ययन और चिंतन करते आए हैं, किंतु जीवन में उसका अनुप्रयोग नहीं कर पा रहे। यह वैसा ही है जैसे कोई पाक-शास्त्र पढ़े, उस पर चर्चा करे, पर भोजन पकाकर खाए नहीं।’’ उन्होंने कहा कि गीता केवल बौद्धिक विमर्श का विषय नहीं, बल्कि जीवन में उतारने योग्य साधना है।
स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने अपने वक्तव्य में गीता के तेरहवें अध्याय का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘भगवान श्रीकृष्ण आत्मा और शरीर के भेद को स्पष्ट करते हैं। तीन गुण—सत्त्व, रजस और तमस—मानव के स्वभाव के आयाम हैं। आत्मज्ञान ही मोक्ष का पथ है।’’
स्वामी मस्तो बाबा ने कहा कि ओशो की ‘गीता दर्शन’ टीका विश्व की सबसे विस्तृत व्याख्या है, जो वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ गीता को समझने का अवसर देती है। उन्होंने बताया कि ओशो ने ध्यान के अनेक प्रयोग सिखाए हैं ताकि साधक केवल ज्ञान न प्राप्त करे, बल्कि आत्मानुभूति भी कर सके।
पवन सचदेवा ने जानकारी दी कि इस ध्यान यज्ञ का संचालन ओशो के अनुज स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती, गुरुमाँ अमृत प्रिया, मां मोक्ष संगीता और स्वामी मस्तो बाबा द्वारा किया जाएगा। प्रतिभागियों से आग्रह किया गया है कि वे सफेद या मेरून रंग के ढीले वस्त्र लेकर आएं, जो ध्यान-साधना के अनुकूल हों।
मां मोक्ष संगीता ने कहा कि ‘‘जीवन में दुख जब चरम पर होता है, तो आस्तिकता डगमगाने लगती है। गीता बताती है कि दुख का असली कारण स्वयं व्यक्ति है और उसका उपाय है—साक्षीभाव।’’ उन्होंने कहा कि ओशो बार-बार कहते हैं—”मानो मत, जानो। प्रयोग करो, और अपने अनुभव से सत्य तक पहुंचो।’’ यह आयोजन ओशो फ्रेगरेंस आश्रम द्वारा श्री रजनीश ध्यान मंदिर में आयोजित किया जा रहा है।