
बीबीएन, नेटवर्क, 31 जुलाई। कई बार ऐसा होता है कि हम रात भर 7-8 घंटे की नींद लेने के बावजूद सुबह उठते ही अपने दिमाग को भारी, सुस्त और उलझन से भरा महसूस करते हैं। ध्यान नहीं लगता, सोचने-समझने में दिक्कत आती है और मूड भी गड़बड़ रहता है। आमतौर पर हम इसे थकावट या खराब नींद का नतीजा मानते हैं, लेकिन यदि यह स्थिति बार-बार हो रही है तो यह एक संकेत हो सकता है , ब्रेन फॉग का।
नींद पूरी, फिर भी दिमाग थका क्यों?
विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल घंटों की नींद ले लेना पर्याप्त नहीं होता। असल ज़रूरत होती है — गुणवत्ता पूर्ण नींद की। अगर आप देर रात तक मोबाइल या लैपटॉप पर स्क्रॉल करते हैं, बार-बार नींद टूटती है या सोने से पहले मस्तिष्क को आराम नहीं देते, तो आपकी नींद भले पूरी मानी जाए, लेकिन मस्तिष्क को वह सुकून नहीं मिल पाता जिसकी उसे ज़रूरत होती है।
तेज-रफ्तार जीवनशैली के चलते हम खुद को नज़रअंदाज़ करने लगे हैं। दिमाग को विश्राम न मिल पाने की स्थिति में ब्रेन फॉग जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं।
क्या है ब्रेन फॉग?
दिल्ली स्थित मैक्स अस्पताल के न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. दलजीत सिंह बताते हैं कि “ब्रेन फॉग कोई बीमारी नहीं है, लेकिन यह एक मानसिक स्थिति है जिसमें मस्तिष्क अपनी सामान्य कार्यक्षमता खोने लगता है।” इसे आम बोलचाल में “दिमाग पर धुंध छा जाना” भी कहा जा सकता है। इस दौरान व्यक्ति को ध्यान केंद्रित करने, बातों को याद रखने या स्पष्ट रूप से सोचने में कठिनाई होती है।
ये कारण बनते हैं ब्रेन फॉग की वजह
ब्रेन फॉग की जड़ें हमारी जीवनशैली और खानपान में छिपी होती हैं।
– पोषण की कमी,
– लगातार मानसिक तनाव,
– शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन),
– थायरॉइड असंतुलन,
– विटामिन B12 और D की कमी,
– अत्यधिक स्क्रीन टाइम,
– कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव,
इन सभी कारणों से मस्तिष्क की सक्रियता प्रभावित होती है। कोविड-19 के बाद भी बड़ी संख्या में लोगों में “पोस्ट कोविड ब्रेन फॉग” जैसे लक्षण सामने आए हैं, जिसमें व्यक्ति शारीरिक और मानसिक थकान से जूझता है।