
बीबीएन, नेटवर्क, 6 अगस्त। स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां इस बार भी पूरे उल्लास के साथ शुरू हो चुकी हैं, लेकिन उत्सव की इस भव्यता के पीछे छिपी संवेदनशीलता और परंपराओं का आयाम कहीं अधिक गहरा है। लाल किले की प्राचीर से हर वर्ष देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री का भाषण जितना प्रतीकात्मक होता है, उतनी ही गूंज लाइट फील्ड गन से दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी की होती है।
भारतीय सेना की सेरेमोनियल बैटरी, जो इस सलामी की जिम्मेदारी निभाती है, केवल सैन्य अनुशासन की अभिव्यक्ति नहीं बल्कि राष्ट्रीय गौरव का जीवंत उदाहरण भी है। यह सलामी, एक सैन्य परंपरा के रूप में, आज़ाद भारत की संप्रभुता, अखंडता और शहीदों के प्रति सामूहिक श्रद्धांजलि का प्रतीक बन चुकी है।
गौरवशाली सैन्य परंपरा का प्रतीक
सेरेमोनियल बैटरी की तैनाती और लाइट फील्ड गन का प्रयोग न केवल एक सैन्य कार्रवाई है, बल्कि भारतीय गणराज्य की परिपक्व लोकतांत्रिक परंपराओं का स्मारक भी है। इन तोपों की गर्जना राष्ट्रगान की धुन के साथ पूरी तरह से समन्वित होती है, जो न सिर्फ दृश्य और श्रव्य सौंदर्य रचती है, बल्कि नागरिक चेतना को भी झकझोरती है।
लाइट फील्ड गन: तकनीक और परंपरा का संगम
लाइट फील्ड गन (एलएफजी), जिनका उपयोग इस समारोह में होता है, भारतीय सेना की रणनीतिक क्षमताओं का भी संकेत देती हैं। युद्धभूमि में प्रभावशाली सिद्ध होने के बावजूद, इनका यहां उपयोग एक विशिष्ट सांकेतिक भूमिका में होता है — जिसमें शक्ति, शांति और परंपरा, तीनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
राष्ट्रध्वज के प्रति सम्मान
21 तोपों की सलामी उस भावनात्मक बंधन का प्रतिनिधित्व करती है, जो देश और नागरिक के बीच अटूट है। यह नमन उन लाखों शहीदों को भी समर्पित होता है जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर किए। इस समारोह के माध्यम से देश एक बार फिर उन आदर्शों की पुष्टि करता है, जिनके लिए स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी गई थी।
अस्तित्व और अस्मिता का उत्सव
लाल किले का स्वतंत्रता दिवस आयोजन, केवल एक सरकारी औपचारिकता नहीं, बल्कि राष्ट्र की स्मृति और चेतना का उत्सव है। जब ध्वजारोहण के साथ तोपें गरजती हैं, तो यह एक क्षण होता है जहां इतिहास, वर्तमान और भविष्य एक सूत्र में बंधते हैं।
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