
पाकिस्तान में उबलता असंतोष: फिलिस्तीन समर्थन से सत्ता विरोध तक
बीबीएन, नेटवर्क, 14 अक्टूबर। पाकिस्तान इन दिनों अस्थिरता और हिंसा के गहरे दौर से गुजर रहा है। सीमाओं पर बंदूकें गरज रही हैं तो शहरों में नारों और आग की आवाज़ें गूंज रही हैं। एक तरफ बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के आज़ादी समर्थक गुट सेना को लगातार चुनौती दे रहे हैं, वहीं अफगान सीमा पर तालिबान के साथ मुठभेड़ें थमने का नाम नहीं ले रही हैं।
देश के भीतर हालात और अधिक तनावपूर्ण तब बने जब तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) नामक कट्टरपंथी संगठन ने फिलिस्तीन के समर्थन में व्यापक प्रदर्शन शुरू किया। जो आंदोलन इजरायल के विरोध से शुरू हुआ था, अब सरकारी विरोध और सड़कों पर हिंसा के रूप में फैल चुका है। कई शहरों में पुलिस और सेना को अपने ही नागरिकों पर गोली चलानी पड़ी है।
पंजाब प्रांत के मुरीदके में TLP समर्थकों का मुख्य शिविर केंद्र बन गया है। रविवार को सुरक्षा बलों ने यहाँ घेरा बनाकर भारी संख्या में जवान तैनात किए। प्रदर्शनकारियों की दो बार की राजधानी की ओर बढ़ने की कोशिशों को नाकाम कर दिया गया। रात के अंधेरे में गोलियों की आवाज़ें सुनाई दीं जिससे माहौल और भयावह हो गया।
इसी बीच, सेना के भीतर भी असंतोष की खबरें हैं। पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर के खिलाफ एक सैनिक द्वारा जारी वीडियो ने बगावत की चिंगारी को हवा दे दी है। इससे सेना के भीतर अनुशासन और नियंत्रण पर गंभीर सवाल उठे हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पंजाब सरकार ने TLP नेताओं के साथ संवाद की शुरुआत की है।
सरकारी दल में सांसद राणा सनाउल्ला, सलाहकार हाफिज ताहिर अशरफी और स्वास्थ्य मंत्री ख्वाजा सलमान रफीक शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार शुरुआती दौर में कुछ प्रगति हुई है और आंदोलन को समाप्त करने पर विचार चल रहा है। लाहौर-इस्लामाबाद राजमार्ग फिर से खोला गया है, जिसे वार्ता की दिशा में सकारात्मक संकेत माना जा रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि पाकिस्तान का यह संकट केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि वैचारिक भी है। समाज के भीतर बढ़ती धार्मिक कट्टरता और शासन में कमज़ोर विश्वास ने देश को एक बार फिर अस्थिरता के भंवर में ला खड़ा किया है।
—