
बीबीएन, नेटवर्क, 31 जुलाई। बदलती जीवनशैली और बढ़ते रोगों के बीच परंपरागत आहार अब एक बार फिर चिकित्सा विज्ञान और जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों की नज़र में आ गया है। ऐसा ही एक अनाज है जौ, जिसे आयुर्वेद और आधुनिक शोध दोनों ही स्वास्थ्य के लिए अमूल्य मानते हैं।
जौ में मौजूद बीटा-ग्लूकेन नामक फाइबर, हृदय की सेहत, पाचन तंत्र की मजबूती और रक्त शर्करा के नियंत्रण में अहम भूमिका निभाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह अनाज प्रोटीन, आयरन, मैग्नीशियम और एंटीऑक्सीडेंट का भी समृद्ध स्रोत है, जो शरीर को भीतर से पोषण देता है। भारत में पारंपरिक रूप से जौ की रोटी और दलिया का सेवन आम रहा है।
आयुर्वेद में जौ की महत्ता
आयुर्वेद के मतानुसार, जौ में शीतल और शुद्धिकारक (डिटॉक्सिफाइंग) गुण पाए जाते हैं। इससे बनी रोटी जब घी और गुड़ के साथ खाई जाती है, तो यह न केवल स्वादिष्ट होती है, बल्कि कई प्रकार के शारीरिक विकारों को भी दूर करती है।
जौ की रोटी बनाने की विधि
एक कटोरे में 1 कप जौ का आटा और एक चुटकी नमक लें। उसमें गर्म पानी मिलाकर आटा गूंथें और 10 मिनट तक ढककर रखें। फिर रोटियाँ बेलें और तवे पर सेंक लें। ऊपर से थोड़ा देसी घी और गुड़ डालकर गरमा-गरम परोसें।
सेहत के लिए कैसे लाभकारी है यह संयोजन
घी, आयुर्वेद के अनुसार, आंतों में चिकनाई और वात को संतुलित करता है। घी में उपस्थित विटामिन K, कैल्शियम के अवशोषण को बेहतर बनाकर हड्डियों को मज़बूती देता है। वहीं, गुड़ शरीर में संचित विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह परंपरागत भोजन आधुनिक जीवनशैली में भी पूरी तरह प्रासंगिक है। बदलते दौर में जहां बाजार रेडी-टू-ईट उत्पादों से भरा पड़ा है, वहां जौ, घी और गुड़ का यह संयोजन एक बार फिर सेहत की असली चाबी बन सकता है।