
बीबीएन,बीकानेर, 22 अगस्त। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन मंदिर, भीनासर इन दिनों पर्यूषण महापर्व की भक्ति संध्याओं से सराबोर है। कोचर मंदिरात एवं पंचायती ट्रस्ट के तत्वावधान में बीते नौ वर्षों से यह आयोजन लगातार होता आ रहा है, जिसने स्थानीय धार्मिक परंपराओं को नई ऊर्जा और पहचान दी है।
20 से 26 अगस्त तक प्रतिदिन रात आठ से दस बजे तक आयोजित होने वाली इन भक्ति संध्याओं में बीकानेर, गंगाशहर, भीनासर और आसपास के इलाकों से सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं शामिल हो रहे हैं। बुधवार को आयोजित संध्या में वरिष्ठ कलाकार विनोद सेठिया, सुनील पारख (आनंद) और युवा गायक अरिहंत नाहटा ने अपने भजनों से ऐसा माहौल बनाया कि पूरा पंडाल प्रभुभक्ति में डूब गया।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी उल्लेखनीय है। करीब 450 वर्ष पूर्व चौथे दादागुरु श्री जिनचंद्र सूरीजी के करकमलों से स्थापित इस मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की सहस्त्राब्दी प्राचीन प्रतिमा विराजमान है, जिसे गुजरात से लाकर प्रतिष्ठित किया गया था। भक्तों का मानना है कि इस प्रतिमा के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां विराजमान अधिष्ठायक देव हाजरा हुजूर श्री मणिभद्र वीर भी श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र हैं।
भीनासर मंदिर से जुड़ा एक और ऐतिहासिक प्रसंग यह है कि उदयरामसर का प्रसिद्ध भादवा सुदी पूनम मेला पहले दिन यहीं से प्रारंभ होता था और फिर उसी दिन उदयरामसर में आयोजित होता था। यह परंपरा मंदिर की सामाजिक और धार्मिक प्रतिष्ठा को और प्रबल बनाती रही है।
विशेष रूप से उल्लेखनीय यह है कि यहां का पर्यूषण महोत्सव राजस्थान में एकमात्र ऐसा आयोजन है, जिसमें तेरापंथ, स्थानकवासी और मंदिरमार्गी—तीनों जैन संप्रदायों के अनुयायी सामूहिक रूप से सम्मिलित होते हैं। यह सामूहिक एकता जैन धर्म की विशिष्टता के साथ-साथ सामाजिक सद्भाव और धार्मिक सहयोग का संदेश भी देती है।
भीनासर का यह मंदिर बीकानेर की सांस्कृतिक धरोहर और आस्था का प्रतीक माना जाता है। पीढ़ियों से यह स्थल भक्तों को न केवल आध्यात्मिक प्रेरणा देता आ रहा है, बल्कि सामूहिकता और भक्ति की परंपरा को भी जीवंत बनाए हुए है।
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